नई दिल्ली। वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को लेकर सोमवार को एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए उस याचिका पर जवाब मांगा, जिसमें वक्फ अधिनियम 1995 के संशोधित प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। कोर्ट ने इस याचिका को पूर्व से लंबित संबंधित याचिकाओं के साथ जोड़ दिया है।
सीजेआई ने देरी पर जताई चिंता
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अनुपस्थिति में सुनवाई कर रही खंडपीठ — जिसमें शामिल थे जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह — ने याचिकाकर्ता निखिल उपाध्याय की याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया। सुनवाई के दौरान सीजेआई गवई ने याचिकाकर्ता के वकील अश्विनी उपाध्याय से पूछा कि 1995 के कानून को अब, लगभग तीन दशक बाद, क्यों चुनौती दी जा रही है।
वकील उपाध्याय ने जवाब में कहा कि याचिका 2013 के संशोधनों और 2025 के नए संशोधन को लेकर है। इस पर पीठ ने टिप्पणी की कि 2013 के संशोधन को भी 12 साल बीत चुके हैं। सीजेआई ने स्पष्ट कहा कि इतनी देरी से याचिका दाखिल करने पर अदालत इसे खारिज भी कर सकती है।
क्या है याचिकाकर्ता की दलील
याचिका में कहा गया है कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 और मूल वक्फ अधिनियम 1995 की कई धाराएं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (भेदभाव के विरुद्ध अधिकार), 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार), 25-27 (धार्मिक स्वतंत्रता) का उल्लंघन करती हैं।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह कानून केवल मुस्लिम समुदाय की धार्मिक संपत्तियों को लेकर बना है, जबकि अन्य धर्मों के लिए ऐसा कोई कानूनी ढांचा नहीं है। इसे आधार बनाते हुए वक्फ अधिनियम को “भेदभावपूर्ण” करार दिया गया है।
पृष्ठभूमि: पहले से लंबित हैं कई याचिकाएं
सुप्रीम कोर्ट पहले से ही पूजा स्थल अधिनियम 1991 और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। अब वक्फ अधिनियम को लेकर दायर यह याचिका भी इन्हीं संवैधानिक बहसों की श्रृंखला में जुड़ गई है।